Thursday, December 28, 2017

चचा चारों खाने चित्त

ये वृतान्त मेरे बचपन की है, जब हम पड़ोस के बच्चो के साथ खेलते हुए बड़े हुए ना की अपने अपने मोबाइल फोन पे टेम्पल रन खेल के, उस समय कहानी सुनना ही पसन्दीदा काम हुआ करता था | ना ही कोई निन्जा हतोड़ी हुआ करता था और न ही कोई डोरेमोन | बड़ा अच्छा समय था और उसी समय की आँचल से एक कहानी निकाल के लाया हूँ | बात हमारे पडोसी फेकू चचा (चाचा ) की है उन का नाम लेना सही नहीं होगा इसलिए  हम उन्हें इस कहानी में   कमल के नाम से सम्बोधित करते हैं और बांकी पोस्ट की तरह इस पोस्ट में  भी मेरे पिताजी घटना के केन्द्र में  हैं | कमल चाचाजी पिताजी के अच्छे  मित्र थे और दोनों के  बीच में  खींच तान हर दूसरे  मित्र की तरह बदस्तूर जारी था | यूँ तो चाचाजी स्वभाव  के बड़े सरल व्यक्ति थे परन्तु जब चाचा कहानी सुनाते  तो उनकी कहानी आम से शुरू हो के अमरूद तक पहुच जाती और अंत में  चाचाजी कहानी के  नायक की तरह असंभव वस्तु और व्यक्ति  पर विजय प्राप्त कर लेते , चुकि हम थे तो बच्चे और हर असंभव वस्तु हमे चकाचौंध करती अतः  चाचा हमलोगों में  बड़े पॉपुलर थे | गर्मी का मौसम था और चाचा को घेर के बच्चो की मंडली कहानी सुनाने की ज़िद करने लगे, चाचाजी ने  चिर परिचित अंदाज़  में कहानी की शुरुआत  की |
ये कहानी उनकी एक ट्रेन  यात्रा  की थी, कमल  चाचाजी आपने कुछ मित्रों के साथ  पटना जा रहे थे त्योहार का समय था और ट्रेन में काफ़ी भीड़ थी, अभयपुर स्टेशन आने ही वाला था और लगभग शाम हो चली थी , अभयपुर के पास जंगल था और ट्रेन जंगल के पास ही अचानक झटके के साथ रुक गई और २-४ लोग जिनके हाथों में हथियार और मुँह पे कपड़ा बंधा था ट्रेन की ओर लपके और  ट्रेन को   लूटने लगे |  चाचाजी आपने दोस्तो के साथ ट्रेन कोच  के  दरवाज़े की ओर लपके और उसे बंद कर दिया , जब तक लुटेरे उनके कोच की तरफ पहुंचे तब तक लोगों ने सारे खिड़की और दरवाजे बंद कर के या तो सामान वाली जगह पर या गाड़ी के फर्श   पे लेट गए और लुटेरो को भागने पे मजबूर कर दिया |  जैसे ही उनकी कहानी समाप्त हुई हम सभी बचे ताली बजने लग गये इतने में  पिताजी भी ऑफिस से आ  गए | पिताजी चाचा के स्वभाव को भली भांति जानते थे और वो चाय की चुस्की लेते हुए बोल पड़े "ये तेरा बड़बोला पन किसी दिन तुझे मुसीबत में डाल देगा " | बात आई गई और दिन गुज़रने लगे चाचाजी कुछ दिनों बाद फिर आए और इस बार कहानी में  उन्हों ने शेर का शिकार ही कर लिया - पिताजी ने समझाया भी, कि  बच्चों  को गलत आदत मत लगओ ये भी तुम्हरी तरह झूठ बोलने लगेंगे  , पर चाचा कहाँ मनने वाले थे |  बस अब पापा तय कर चुके थे की पानी  सर से ऊपर निकल गया है और कुछ करना आवश्यक है |  ठण्ड का मौसम था और अंधेरा जल्दी हो गया था कमल चाचा चाय की चुस्की लेन पहुंच गए पर आज पिताजी दफ्तर से अभी तक वापस नहीं आये थे , माताजी ने चाचा से कहा की कमलजी पीछे आहाते से कुर्सी ला दीजिए  और चाचा मस्त चल में आहाते की और बढ़ चले | हमारे आहाते में काफी पेड़ थे और अंधेरे में  बड़ा भयावह लगता थाबचपन में  तो कई बार मैं भी डर  गया था पर चाचा को आने वाले संकट का कोई आभास नहीं था , पिताजी ने आज पूरी बिसात बिछा रखी थी चाचा को सबक सिखाने के लिये | उपलों से किये  गए  धुंए ने आहाते को और भयावह बना रखा था , माहौल को देखते ही चाचा की हवा टाइट हो गयी और जैसे तैसे अंधेरे  में  कुर्सी तलाशने लगे | अभी थोड़ा ही आगे बढे थे की उनके ऊपर  कुछ गिरा बस चीख निकलते निकलते रह गयी , हमारे महानायक चाचा आज के  दिन को कोसते हुए अंधेरे  मैं इधर उधर टटोल रहे थे आखिरकार उनकी मेहनत सफल तो हुई पर कुर्सी खली नहीं थी उसपे कोई बैठा था , चाचा को काटो तो खून नहीं और डर ऐसा जिसका को वर्णन नहीं |  चाचा धीरे  धीरे  पीछे सरकने लगे तभी कुर्सी पे बैठे उस आदमी ने उनका हाथ पकड़ लिया और उसके मुँह से लाल रंग की रौशनी निकली पुरे शरीर पे काला कपडा और चेहरे पे भी कला और सफ़ेद कपडा लटका हुआ था और वो वस्तु जोर जोर से डरावनी हंसी में  हंसने लगा, चाचा  गिरते पड़ते वहां से भागे और उनकी चीक सुनके हम सब वहां  जमा  हो गए थे बहादुर की सरी हिम्मत हवा हो गयी और वो ठण्ड में  भी पसीने पसीने हो गए |  उधर पिताजी चेहरे से काला कपड़ा हटाते और   मुस्कराते  हुए आहाते से  आ रहे थे |
एक वो वाक्या  था जिसके बाद चाचाजी  ने कहानी तो सुनाई पर हवाबाज़ी बंद कर दी थी | 

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